जामिया आरिफिया स्वतंत्रता दिवस समारोह में शिक्षकों ने विचार वयक्त किये , राष्ट्रीय गान के साथ तिरंगा लहराया गया।
प्रेस विज्ञप्ति, सैयद सरावां, कौशांबी
इस अवसर पर जामिया आरिफिया के मुफ़्ती रहमत अली मिस्बाही ने बताया कि मुल्क के तमाम मुसलमान देश का राष्ट्रीय गान अपने स्कूलों और मदरसों में पढ़ते आए हैं और पढ़ते रहेंगे। राष्ट्रीय गान पढ़ने पर मुसलमानों ने कभी कोई विरोध नहीं किया। सभी मत के उलमा और मशाईख और आम मुसलमानों के बच्चे स्कूलों और मदरसों में राष्ट्रीय गान गाते ही रहे हैं। अगर शरई आधार पर यह ग़लत होता तो उस पर स्वतंत्रता के सत्तर वर्षों में उलमा और मशाइख की तरफ से ज़रूर सवालात उठाए गए होते। मुफ़्ती साहब ने ये भी कहा कि जय हिंद का मतलब भारत जिंदाबाद है। मुसलमान यह नारा उर्दू में भी लगाता है और हिन्दी में भी। मुफ़्ती साहब ने आम मुसलमानों को ख़बरदार किया कि वह किसी भी भावनात्मक और बेवजह बाल की खाल निकालकर कुफ्र व शिर्क साबित करने वाले लोगों के फरेब का शिकार न हों और शरीयत और हालात की नजाकत को गंभीरता से समझें। नहीं तो लम्हों की खता पर सदियों को सज़ा झेलनी पड़ सकती है। अगर कोई तावील न करने और बहर सूरत कुफ्र व शिर्क खोजने पर तुला है तो फिर अल्लामा इक़बाल के तराना में भी उन्हें कुफ्र का फतवा देना चाहिए जिसमें परबत को संतरी और पासबान कहा गया है।
गौरतलब है कि जामिया आरिफिया में हमेशा की तरह इस साल भी धूमधाम से जश्न ए स्वतंत्रता दिवस मनाया गया। जामिया आरिफिया महा प्रबंधक मौलाना हसन सईद सफ़वी और जामिया के प्रिंसिपल मौलाना मोहम्मद इमरान हबीबी ने झंडा फहराया। साथ ही देश के राष्ट्रीय गान के साथ अन्य राष्ट्रीय गीत भी गाए गए। मौके पर जामिया आरिफिया के प्रवक्ता मोलाना मुजीबुर्रहमान अलीमी ने कहा कि जिस तरह भारत को आज़ाद कराने में हर धर्म वालों ने साथ दिया, उसी तरह अब हम सबको मिलकर भारतीय लोकतंत्र की रक्षा के लिए प्रयास करने की जरूरत है। उन्होंने 1857 में विद्वानों के बलिदान का जिक्र करते हुए सज़ा के तौर पर उलमा को काला पानी भेजे जाने और वहाँ उन्हें दी जाने वाली सज़ा का उल्लेख किया जिस से सभी की आंखें नम हो गयीं। आखिर में जामिया आरिफिया के महा प्रबंधक मौलाना हसन सईद सफ़वी ने मुल्क की अम्न व सलामती के लिए दुआ की और उस के बाद मिठाई बाँटी गयी।


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