आतंकवाद दुनिया की
वह बीमारी और रोग है जिसके इलाज और उपचार के लिए
आज पूरी दुनिया परेशान है, लेकिन इसकी खोज अभी
तक पूरी नहीं हुई है। ये वह भयानक रोग है जो पूरी मानवता को अपने चपेट में लिए हुए
है जिससे पूरी दुनिया बेक़रार और परीशान हाल है। हैरत होती है कि इस रोग के खिलाफ़ आवाज़
वह उठा रहे हैं जिनका पूरा जीवन केवल इसी दहशतगर्दी के प्रसारण एवं प्रकाशन में बीत
रहा है । गरीबी और दर्दमंदी के अंत के बारे में बात वह कर रहे हैं जिनका इक्तिदार
इसी पर क़ायम है । जबकि इस रोग का सिर्फ एक ही इलाज है कि हर व्यक्ति को उसका
अपना अधिकार और हक़ दिया जाना चाहिए। लोगों को उनका हक़ दिये बिना आतंकवाद का अंत और
शांति की स्थापना संभव नहीं है ।

मुफ्ती साहब से पहले
मौलाना आरिफ इकबाल मिस्बाही साहब ने पैगंबर मोहम्मद के बारे में बड़ी अछि बातें की और
यह स्पष्ट किया कि शांति, न्याय, इंसाफ़, मानवाधिकार का जैसा नमूना पैगम्बरे इस्लाम ने सारी
दुनिया को दिखाया उसकी मिसाल प्रस्तुत करने से दुनिया अजीज़ है। पैगंबर मुहम्मद के बारे
में सिर्फ उन से मुहब्बत और उन पर इमान लाने वाले ही नहीं बल्कि अन्य धार्मिक विद्वानों
ने भी उनके अदल व इन्साफ की गवाही दी है। मुंशी प्रेमचंद और एन.के. सिंह जैसे लोग भी
पैगम्बरे इस्लाम की रिफत व बुलंदी और महानता को बयान करते हैं और उनकी ज़ात को पूरी
मानवता के लिए नमूना क़रार देते हैं। और आश्चर्य की बात यह है कि उन लोगों ने पैगंबर
मुहम्मद के युक्तिकरण के ज़रिये दुनिया को आकर्षित करने के लिए विभिन्न पुस्तकें लिखी
हैं।
जामिया आरिफिया के
शिक्षक मौलाना मुहम्मद ज़ाकि अज़हरी ने संबोधित करते हुए कहा कि पैगम्बरे इस्लाम ने मानवाधिकारों
का आधार इस हद तक रखा है कि आप कहते हैं: जो किसी गैर मुस्लिम के हक़ को छिन लेगा या
उसे तकलीफ देगा तो क़यामत के दिन मैं उस मुसलमान
की इस के खिलाफ गवाही दूंगा। पैगंबर मुहम्मद ने अन्य धर्मों के देवताओं को बुरा कहने
से भी मना किया है।
आज दुनिया पर
लाज़िम और ज़रूरी है की पैगंबर मोहम्मद के जीवन का अध्ययन करे और उनकी जीवनी और
मार्गदर्शक बातों से समाज में शांति और समृद्धि को कायम करने की कोशिश करे।
इस महान समारोह
में मौलाना मुजीबुर रहमान अलिमी साहब ने निज़ामत की। इस पुरे कार्यक्रम की सरपरस्ती
दाई ए इस्लाम शेख अबू सईद शाह एह्सनुल्लाह मुहम्मदी सफवी (सज्जदः नशीं खानकाह ए
अरिफिया, सय्यद सरवां) ने की। कार्यक्रम के अंत में तमाम मुल्सिम और सैकड़ों गैर-मुस्लिम ने मिल
कर अमन व मुहब्बत की दुआ मांगी।
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